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“क्या ऐसा संभव है?” ‘सम्भावनाये’ एक ऐसा शब्द जो बहुत सामान्य है. लगभग हर कोई इसका प्रयोग कर चुका है और हर दूसरे-तीसरे दिन करता रहता है.
कभी सम्भावना को आशावाद से जोड़ दिया जाता है तो कभी नकारात्मक शब्द-अर्थ से. सम्भावना है की इस बार शादी पक्की हो जाये, सम्भावना है की इस बार हम परीक्षा में सफल रहे..
आज हमारे मन में भी आचानक यह शब्द आ गया ‘सम्भावना’. सम्भावना है की लेख छप जाये या सच कहे की हम कुछ नया करने में सफल हो जाये. विचारो की आभिव्यक्ति जुबा से तो होती थी आज लेखनी से भी हो जाये. कोशिश तो यही रहती है की हमारी सम्भावनाये सदा आशावादी रहे. दुर्भाग्य की सम्भावनाये ना तो वाणी में प्रवेश करे और ना विचारो से चलते-चलते लेखनी तक पहुचे. सम्भावना है की ये वैचारिक आभिव्यक्ति सदा चलती रहेगी और यह भी की शायद कुछ समय तक ही चले पर दोनों में जो भी होगा वर्तमान में जो हो रहा है वही बस जीये….
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