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“अच्छे इंसान की पहचान” बहुत मुश्किल है. यह पहचान हमेशा मुश्किल रही है, हर युग में, पर चुकी यह कलियुग है तो ये कठिनाई अपने चरम की कठिनाई है. कोई अगर यह पूछे की पहले तो सतयुग था फिर त्रेता, जिस युग में अवतार हुए हो वहां भला अच्छे इंसान क्यों नही मिलेंगे , पर उनके प्रश्नों का उत्तर उन्ही क उत्तरों में है. भगवान तब ही तो अवतार लेते है जबकि अच्छे लोग कम और बुरे जयादा हो जाते है
आज के युग में कुछ भी अच्छा ढूंढना मुश्किल होता है, ना शुद्ध वायु मिलती है, ना शुद्ध पानी, ना तो शुद्ध सब्जी मिलती है और ना ही शुद्ध फल सब में मिलावट. इतनी हेरा-फेरी देखकर इंसान के मन ने सोचा जब सबमै मैं ही मिलावट करता हूँ तो मैं शुद्ध रहकर क्यों इसी नयी दुनिया में शामिल ना होऊं … बस इसीलिए अब इंसान भी ‘मिलावटी’ हो गये है.
मनुष्य एक ‘सामाजिक पशु’ है. पशु शब्द जुड़ने से ही उसकी ऐसी संकीर्ण सोच का कारण स्पष्ट होता है. पशुओ का मन भी ऐसी ही संकुचित व विकृत सोच रखता है. लेकिन सामाजिक शब्द जुड़ने से उसके मनुष्य होने का प्रमाण भी मिलता है. मनुष्य….. जिसके पास आत्मा है व चेतना है.
यही आत्मा और चेतना ही उसे यह एहसास दिलाती है की क्या सही है, क्या गलत है. आत्मा एक चीज़ है या गुण है या यूँ कहे की आत्मा, आत्मा ही है किसी से कोई सम्बन्ध नही है, यह मुक्त है. कहा जाता है कि आज का इंसान ज्यादा आस्थिर मन का है. इसका कारण यह है कि आज के आधुनिकतम परिवेश में कथित रूप से आधुनिक बनने या समय के आनुसार चलने कि जो शर्ते है, तरीके है व नियम है, वह हमारे मूल मनुष्य के स्वभाव को बहुत पीछे छोड़ने को कहते है.
आज झूट बोलना गलत नही वरन जरुरी समझा जाता है, सीधे व सरल लोगो को लोग अच्छा नही वरन बुद्धू मानते है, अपने हित को प्रमुखता व दूसरे कि चिंता ना करने वाले को लोग Smart मानते है, बनावटीपन ना दिखने वाले को पिछली व पुरानी पीढ़ी वाले कि नज़र से देखते है, झूटी कसीदे गढ़ने वालो को आधुनिक माना जाता है…
……जहाँ अच्छे इंसान कि परिभाषा में ऐसे लोग आते है, वहां वास्तव में अच्छे इंसान दूंढ़े तो कैसे ढूंढें.??
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