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“प्यार” ….. कहते है जिस शब्द का पहला अक्षर ही अधूरा होता हो उससे पूरा होने कि उम्मीद कैसे कि जा सकती है!
जीवन में एक न एक बार वह भावना सब ही में जगती है! जिसकी कच्ची उम्र में जगती है यानि “किशोरावस्था” वह ज्यादा व्याकुल रहता है क्योकि उसका समर्पण ज्यादा रहता है बाकि सारे रिश्ते पीछे रह जाते है इसलिए असफलता से वह ज्यादा अधीर हो जाते है! यही होती है किशोरावस्था कि नासमझी! फिर आती है… “युवावस्था”.. चुकी एक न एक बार किशोरावस्था में इस फल का स्वाद ज्यादातर लोग चख ही चुके होते है इसीलिए इस उम्र का प्यार अपनी परिभाषाये बदल चुका होता है! अब हम युवा अपने साथी के तौर पर एक List तैयार करते है जिस में प्राथमिक व द्वितीयक करके पूरा क्रम तैयार करते है जिसमें एक Quality न हो तो भी उसे Reserve के तौर पर रखते है जिस में इससे भी कम उसको Time Pass कि संज्ञा से विभूषित करते है! युवावस्था कि इसे समझ कहिये या व्यापारीकरण कि कुछ साल ठोक-बजा कर परखने के बाद ही उसे घरवालो के सम्मुख पेश करते है!
इस प्रेम कि समस्या से वो लोग ज्यादा ग्रसित रहते है जिन्होंने “”बड़े”” होने कि दिशा में नया-नया कदम बढाया होता है! न अपने कुछ अनुभव होते है और न दूसरो को देख कर कुछ सबक लिए होते है! हमारे(मेरे) शोध के मुताबिक यह रोग जितनी जल्दी व कम उम्र में जिन लोगो को होता है उन्हें यदि असफलता मिलती भी है तो भी वो एक के बाद एक जल्दी-जल्दी ऐसी मीनारे खड़ी करते ही रहते ह, वो भी उतने ही जोश-खरोश क साथ ! …….. …. और जिनको युवावस्था में यह रोग होता है वो तो एक व्यापारी कि तरह हो जाते है जिनको माल ख़राब होने का दुःख तो होता है , पर वो रुकते नहीं आगे बढ़ते ही रहते है !
निष्कर्ष सोचो तो यह निकलता है कि प्यार होना जरुरी है यह आपके मनुष्य होने कि गवाही देता है वरना बिना भावना के तो आप मशीन या रोबोट जैसे हो जायेंगे! हम (मै) , सबकी समस्याओ का, वो चाहे जीवन के जिस भी भाग से जुडी हो वो सुलझाते रहते है ! सबसे ज्यादा समस्या इसी दिल के रोग कि रहती है! लोग चाहे जितना भी कहे अपना भूतकाल बिसार नही पाते है ! अगर कोई किस्स्मत वाला होता है तो उसे फिर नया जीवन देने वाला कोई मिल जाता है! उस जीवन में भूतकाल का कोई स्थान नही रहता क्योकि वह “आरम्भ” ही होता है! लेकिन जिनको दुबारा कोई मनचाहा नही मिल पता वो सदा नयी दुनिया बनाने का “प्रयास” ही करते रह जाते है….!
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