- 63 Posts
- 490 Comments
अभी हाल ही में हमारे मूल अधिकारों में शिक्षा का अधिकार सम्मिलित हुआ है! इस अधिकार के अंतर्गत १४ वर्ष से कम आयु के बच्चो को अनिवार्य रूप से शिक्षा दी जाएगी ! सरकार इन बच्चो का खर्च स्वयं वहन करने को तैयार है, इसका कारण है की, ताकि जो माता-पिता आर्थिक रूप से अक्षम है वो भी अपने बच्चो को पढ़ा-लिखा कर देश का योग्य नागरिक बनाये ! पर बात अगर इच्छा शक्ति के ही न होने की हो तो क्या करे सरकार ?
बात कर रहे है आज-कल के हर दिन आने वाले Reality Shows की ! कहने को तो यह सभी बच्चे अच्छे-सम्रध घरो के आते है ! अच्छे स्कूलों में नाम लिखवाये होते है, अग्रेज़ी , जो की कई लोगो के लिए ज्ञानी होने का पर्यायवाची है, का अच्छा उच्चारण भी कर लेते है, पर क्या इतने सब भर से वो पढ़े – लिखो की श्रेणी में आ जायेंगे ! ऐसे बच्चे कहने को तो सम्रध परिवारों से आते है पर तब भी उनके माता-पिता की सोच एक मजदूरी करने वाले माता-पिता की तरह ही होती है ! जैसे ये मजदूरी करने वाले अपने बच्चो की बढ़ी संख्या पर खुश होते है कि अब उनकी रोज़गारी बढ़ेगी और वे उनके उचित भविष्य की चिंता नही करते ! इनसे वो माता-पिता कैसे भिन्न है जो अपने बच्चो की पढाई का base मज़बूत करने के दिनों में उनको दिन-रात shooting और rehearsal में लगाये रहते है ! इनको भी तो लोभ है तो सिर्फ नाम और पैसे का ! आज किसी show से जुड़ने के बाद ये बच्चे पूरा समय उसी को देते है ! ऊचाइयो पर भी पहुचते है पर जब इस शोहरत के बाद फिर गुमनामी में पहुचेंगे तो उनको कौन मनोवैज्ञानिक रूप से सबल बनाएगा ! जब ऐसी परिस्थितियों से बड़े स्वयं को स्थिर नही कर पाते है तो फिर ये तो , सबसे चंचल मन वाली अवस्था होती है!
कुछ बच्चे तो T.V. पर इतने छाए है की हम सोचते है shooting और rehearsal के बाद ये पढ़ते कब है ? यहाँ हम लोग पूरे दिन पढ़ते है तब भी समय का आभाव महसूस करते है तो इनको कौन चमत्कार से pass करवाता है , एक को तो ‘स्वामी विवेकानंद’ मान सकते है पर सबको नही !
एक और बात जो बहुत खलती है वो है बच्चो का अपनी उम्र से दुगना नही ८ गुना अधिक बोलना ! जो बच्चा जितना बड़ो को जवाब देता देखा जाता है उसे उतनी ही प्रशंसा दी जाती है जैसे बड़ो को जवाब देकर उन्हें असहज करके उन्होंने कोई नेक काम कर दिया! जहाँ बचपन में हम लोगो को maa और pa के निर्णयों में बीच में बोलने पर डाट दिया जाता था वहां आज दूसरे की बातो में उनकी बात काट कर बोलने में अच्छा माना जाता है, जो जितना अमर्यादित बच्चा रहता है वह उतनी ही तालिया बटोरता है ! यह सब होता है तो सिर्फ उस show की TRP बढ़ाने के लिए ही लेकिन दूरगामी परिणामो से मतलब नही रहता ! ये स्वयं में तो बदजुबान हो ही जाते है साथ ही दर्शकगण के तौर पर उनके जो हम उम्र नन्हे-मुन्ने उन्हें देख रहे होते है उनको भी वह व्यवहार सही लगने लगता है और वह भी उसकी नक़ल करने लगते है! हमारे T.V. shows का प्रभाव बालमन पर ही नहीं परिपक्व मन पर भी समान रूप से पड़ता है ! आज-कल हमने ऐसे बहुत से बच्चे देखे है जो बत्तमीजी करते है और TV वाले बच्चो की तरह माता-पिता के लिए SMART बच्चे बन जाते है ! कुछ लोगो का तर्क होता है की बच्चो को ज्यादा रोक-टोकने से वो अपना आत्मविकास नही कर पाएंगे , बड़े होकर भीड़ में खड़े होने का आत्मविश्वास नहीं पाएंगे! पर अब तक के समय में भी लोगो ने उचाईयां पाई है , सफलताये अर्जित की है!
हर उम्र की अपनी सीमाये है , अपनी गरिमा है! बचपन से एक प्रसिद्ध बात सुन रखी है की जब “बड़ो का जूता बच्चे के पैर में आने लगे तो उसे स्वत्रंता दे देनी चाहिए , दोस्त बन जाना चाहिए ” तो उस उम्र को आने का मौका तो दो ! पौष्टिक भोजन भी असमय खाने से स्वास्थ्य ख़राब कर देता है वैसे ही समय से पहले स्वत्रंता उसके चरित्र पर दुष्प्रभाव डाल सकती है और स्वत्रंता मिल भी जाये तो भी उसे मर्यादित रहना चाहिए!
Read Comments