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भिन्न सोच यानी “सनकी”

My Thought
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कुछ दिन पहले ही हमारे किसी खास ने हमसे कहा के तुम तो सनकी हो ! तब ध्यान गया सनकी शब्द पर ! सोचा क्यों कहा ? ये मजाक था क्या? फिर सोचा ये तो विभेदीकरण हुआ ! खुद को, गौर से समझा तो थोड़े कारणों पर नज़र गयी ! हम हमेशा जो सोचते है- वो कहते है- वो ही करते है! जो सोचते है वो सामान्यतः हमारे अपनों से भिन्न रहता है ! शायद भिन्न सोच रखने के कारण ही सनकी कहलाते है !
आप भी ज़रा गौर फरमाएंगे तो पाएंगे कि जिसने भी इतिहास रचा है वो सनकी ही होते है यानी ज्यादा तोल-मोलते नहीं है जो एक बार मन कहता है वह ठान लेते है ! अगर देश आज़ाद करवाने वाले सनक न दिखाते तो अंग्रेजो के एक ही प्रहार में चुप बैठ जाते !
कोई अविष्कार होता है तो अगर सनक न हो तो वैज्ञानिक कुछ प्रयासों में ही थक कर बैठ जाते और कोई अविष्कार न कर पाते !
दूसरो से या कहे कि बहुमत से हट कर उनकी सोच से ज्यादा और भिन्न सोच रखने वाले सामान्यतः सनकी से ही विभूषित कर दिए जाते है !
जब कोई ईमानदारी के पथ पर बढ़ता है तो उसके सामने तमाम प्रलोभन दिए जाते है कई बार साम – दाम – दंड – भेद सब ही का सहारा लिया जाता है पर यह उसकी सनक ही होती है की वह हर परेशानी का मुकाबला करता हुआ कष्ट झेलकर भी अपना ईमान नही बेचता !
जो अपनी भिन्न सोच को सही सिद्ध कर देता है वह ‘स’ से ‘सफल’ कहलाता है और जो असफल हो जाता है उसे ‘स’ से ‘सनकी’ से विभूषित कर दिया जाता है!

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