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आंसूं-घर के भेद ज़माने को बोल देते है

My Thought
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आंसूं मन की अभिव्यक्ति का एक बहुत बड़ा साधन है! कोई खुश हो या दुखी ये अपने आप अपने किवाड़ खोल के बहार आ जाते है ! कई बार डांटने को मन करता है , पूछो जो क्यों? , तो इसलिए क्योकि ये घर के भेद ज़माने को बोल देते है!
कहीं-कहीं बहुत मूल्यवान हो जाते है ये ! बहुत पूछ होती है इनकी जब एक दुल्हन विदा हो रही होती है तो लोग इन्ही आंसुओ की मात्रा से ही मायके के प्रति प्यार की जानकारी प्राप्त करते है अगर कोई नहीं रोई तो समझा जाता है की इसने नमक का क़र्ज़ नही चुकाया जो नमकीन पानी, जो आश्रुयो की झड़ी नही लगायी!
जब किसी की मृत्यु होती है तो भी इन आंसुओ की मात्रा से उक्त व्यक्ति के प्रति नाते-रिश्तेदारों का मोह प्रदर्शन होता है ! जो बहुत करीबी होते है उनके तो स्वाभाविक ही ये झरते है वरना, बाकि माहोल में adjust करने के लिए ऐसा करते है!
जब छोटे थे और गलती हो जाती थी तो तुरंत उस गलती पर पानी डालने के लिए छोटी -छोटी आँखों में बड़े-बड़े आंसू भर लेते थे बस बच जात्ते थे उस समय आंसू दिखाने का प्रयास करते थे आज छुपाने का !! अब युवावस्था में आकर इन आंसुओ को छिपाने के लिए बड़े-बड़े प्रयत्न करने पड़ते है ! अब हम युवा इनको आख रुपी घर में पलक रुपी किवाड़ में कस कर बांधे रखते है ! जब ये बांध तोड़ते है तो सबसे अच्छा समय रात की ख़ामोशी का इंतज़ार करते है और रात का भी इंतज़ार न हो पा रहा हो तो बाथरूम में पानी भरती बाल्टी के कोलाहल की शरण लेते है !
पर ये तब सबके सामने हम युवाओ को बेनकाब कर देते है जबकि हमारी कोई उड़ान रुक गयी हो या आस रुपी पंछी घायल हो गया हो! किसी कड़ी मेहनत से दी गयी प्रतियोगिता में असफलता की बात हो….. या…… मनचाहा मुकाम न पाने की कसक….. या….. किसी के बिछुड़ने का गम………………… सामान्यतः यही तो कारण है जिनसे हम लोग ज्यादातर अधीर हो जाते है वरना खुद को चट्टान जैसा दिखाने से हम कहाँ पीछे रहते है!

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