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कोई कहता है सपने मत देखो क्योकि उनके टूटने से बहुत दर्द होता है ! कोई कहता है सपना देखो तो चाँद पाने का सितारे तो अपने आप पा लोगी!
फिर हमेशा की तरह चिंतन में खो गयी सपनो के …. खुद से पूछा “तुम सपने देखती हो ?” जवाब मिला “हाँ” ! फिर पूछा कितने पूरे हुए जवाब मिला “सपने कम देखे है , पर जितने देखे है बहुत बड़े देखे है और उनके पूरे होने का एक समय भी निश्चित है इसलिए धैर्य धारण करे है! ”
फिर खुद से पूछा “कब से सपने देख रही हो?” जवाब मिला “बचपन से” ! बस तब के सपनो और अब के सपनो में इतना अंतर है की बचपन में नींद से सुबह उठ कर नया सपना देखने लगते थे पुराना , पुराना समझ के भूल जाते थे! पर आज के सपने सोने ही नही देते है! एक सपना ही सारे सपनो को समेटे है!
हमारे ख्याल से सपना देखना जरुरी है क्योकि जब मंजिल ही नही तय होगी तो फिर चलेंगे किस रस्ते पर?
बस ध्यान रखना चाहिए की सपने सत्य के धरातल पर कदम रखे-रखे ही आसमान की ऊचाइयो को छूने का प्रयास करे ! जिससे अगर आसमान न भी छू पाए तो कम से कम धरातल पर तो अपना बसेरा रहे ! उस ऊचे मुकाम पर मकान की चाहत में कहीं यहाँ का भी मकान न छूट जाये वरना फिर गलियों के मोड़ो में से अपना मोड़ ढूँढना भी कठिन न हो जाये!
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