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आत्मअनुशासन – little efforts makes difference a lot

My Thought
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आज लखनऊ विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह था ! हम लोगो को कक्षा कार्य नही होने की कोई पूर्व सूचना नही थी , हम लोगो को लगा परीक्षाये पास है तो शायद गुरुजन कोर्स ख़त्म करवाने के लिए कक्षाए ले ले पर ऐसा कुछ नही हुआ थोड़ी देर बाद वि. वि. के प्रशासनिक आधिकारियो ने हम लोगो को कक्षाओ से बाहर कर दिया , वैसे ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है जब वि. वि. के छात्र होने पर भी हम लोगो को परिसर में बैठने पर रोका टोका गया है , खैर फिर भी कक्षाओं से निकल कर परिसर में अन्यत्र group study के उद्देश्य से हम लोग बैठे लेकिन वहां पर हमारे वि. वि. के किशोर कुमार, सोनू निगम , शान आ कर हम लोगो को नए गानों से परिचित कराने लगे हम लोगो ने भी विचार- विमर्श किया की कहीं गाना गाते-गाते इनके गले न चोक हो जाये इसलिए चलते है ! समारोह की तैयारिया पूरी ही थी तो सोचा चलो गोल्ड मेडल मिला नही है तो क्या हुआ प्राप्त करते लोगो के लिए चलकर थोड़ी देर तालिया बजाते है ! पदक वितरण देख कर उठे तो निकलने नही दिया गया फिर सबके भाषण सुने अंतिम भाषण होते ही बाहर निकलने दिया गया उस समये सिर्फ राष्ट्रगान ही बाकी था , मन में आया की जब पूरा समारोह देख ही लिया है तो कुछ मिनट इसे देने में क्या जा रहा है? पर ऐसा बहुत बार होता है की ‘ बाकी नही कर रहे है तो हम क्या & क्यों हम करे ?? ‘ मुख्य बात यह थी की परीक्षाये सर पर है तो जल्दी घर जाना चाहते थे फिर साथ की classmates ने कहा तो अपने विवेक का ज्यादा प्रयोग किये बिना बाहर के लिए निकल गये मन में यह सब बाते आ रही थी, की तभी यह भी ख्याल आया की राष्ट्रगान होने वाला है और फिर विद्या के घर जहाँ बचपन से ही सीखा है की राष्ट्रगान पर सावधान होना चाहिए वरना अपमान होगा ये, न मानते तो सारी शिक्षा-दीक्षा पर प्रश्चिन्ह लग जाता उस ground के gate से निकलते ही जन-गण-मन की धुन बज गयी , हम बिना ये देखे की कौन सावधान है , कोई और है भी की नही हम सावधान हो गये , हमे देख कर पास से जो students निकल रहे थे वो भी सावधान हो गये , सामने से जो आ रहे थे हम लोगो को देख कर वो भी सावधान हो गये ! हमारे साथ की सहपाठियों द्वारा “चलो-चलो” का जवाब न देने पर वो भी समझ गयी और सावधान हो गयी ! कुछ सेकंड में जो छात्रों का समूह स्वाभाविक शोर के साथ निकल रहा था Pin drop Silence के साथ सावधान हो गया ! खुद को थोडा अच्छा लगा की छोटे-छोटे efforts कितने अच्छे फल देते है ! हमारे जैसे कुछ छात्रों के आत्म-अनुशासन से सब स्वतः अनुशासित हो गये ! पर वहां खड़े वि. वि. के कुछ चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों पर हमे थोडा गुस्सा आया क्योकि वो शैक्षिक परिसर के कर्मचारी हो कर भी इसका महत्व नही जानते थे इतना शांत वातावरण देखकर भी वो जोर-जोर से अपनी निजी वार्ता करते रहे! राष्ट्र गान की समाप्ति पर हमारा मन हुआ की उन्हें कुछ कह के आये पर हमारी उम्र्र से दुगनी उम्र्र से भी ज्यादा उम्र्र होने के कारण हम उनसे कुछ नही बोले क्योकि सामान्यतः बड़ो को छोटो की बाते सही होने पर भी दिल को बहुत जल्दी चुभ जाती है !
little efforts का अनुभव पहले भी हुआ है ! कई बार शिक्षित – अशिक्षितों का सा और अशिक्षित – शिक्षितों का सा बर्ताव करते है ! मसलन हम लखनऊ के अमीनाबाद से नक्खास के रस्ते से निकलते ही रहते है वहा बहुत सम्रद्ध कारोबारियों की थोक की दुकाने है और सामान ढोने के बड़े-बड़े वाहन वहां खड़े रहते है और यातायात पुलिस इतने महतवपूर्ण जगह पर कभी पाई ही नहीं जाती वहां व्यापारी अपने माल को सड़को पर ऐसे बिखरे रहते है जैसे ये सड़क इनकी निजी सम्प्पति है वाहन जाम में फसना आम बात है तब ऐसे में जो काम लखनऊ यातायात पुलिस को करना चाहिए वो local common व्यक्ति करता है ! ऐसे ही आत्म-अनुशासन का एक छोटा सा अनुभव और है , हम उसी रास्ते पे taxi से जा रहे थे तो भयानक सा जाम लगा था हमारी दिशा से 3 लेने बनी थी और bike वाले 4th line बना-बना के निकल रहे थे , सामने का यातायात हिल भी नही रहा था ! तब हमारे taxi वाले ने अपने विवेक से 3rd row से 2nd row में दबानी शुरू की और पीछे का यातायात स्वतः ही उस टेम्पो को follow करते-करते 2nd row में आ गया, सामने से आने वालो को जगह मिल गयी और रेंगते-रेंगते एक व्यक्ति के आत्म-अनुशासन से यातायात सुलझ गया !

बाहर निकलो तो बुरे के साथ अच्छे अनुभव भी मिलते है और जैसे भी अनुभव हो सीखने को तो हमेशा ही मिलता है ! भगवान से हम हमेशा कहते है अगर कोई घटना negative भी हो .. तो भी हम उसे positive way में ही mold करके अपनाये !

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