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ITBP – आराजक तत्त्व / आनुशासनहीनता – शिक्षा की भूमिका

My Thought
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ITBP के प्रतिभागियों के साथ जो घटना घटी वह बहुत ही ह्रदयविदारक थी ! कितने संकटों से माता-पिता ने पढाया होगा ! ग्रामीण परिवेश के छात्रों को तो शिक्षा प्राप्त करने में ज्यादा समस्याए उठानी पढ़ती है ! पढ़ लिख कर जब अपने सपने पूरा करने का समय आया तो ख़राब प्रबंधन के शिकार हो गए !
आज-कल क्रोधावेश में सार्वजिनिक संपत्ति को बर्बाद करने का एक trend सा बन गया है ! क्यों होता है युवा इतना आनुशासनहीन ?? इसका कारण निसंदेह ये है की उन्हें अच्छी नीव उपलब्ध नही हुई है ! जिस तरीके से वे अपना विरोध जताते है उनमें एक आशिक्षित और बर्बर समाज का बोध होने लगता है ! प्राइमरी इस्कूलो में जब अ , आ , इ , ई सीखाने वाले ही नदारत रहते है तो नैतिक शिक्षा का पथ कौन सीखाये ! प्राइमरी शिक्षक बनने की होड़ तो बहुत है पर नौकरी के बाद उस पद से न्याय किसी को नही करना !
ITBP के प्रतिभागियों ने जो कुछ करा कुछ हद तक वो विरोध अपेक्षाकृत था पर जिस तरीके से उग्रता दिखाई वो हमे तो थोड़ी संदेहजनक लगी ! लड़के उग्र होने के बाद किस हद तक जाते है हम प्रत्यक्ष रूप से भी देख चुके है ! पर कुछ बाते हमे वीचारनिया लगी की :

– कोई छात्र या छात्रा जब एक आपरिचित शहर में जाते है तो बिना दबाव के स्वेच्छा से कई समझोते करते है ! खाना – पीना , सोना – रहना सब में समझौते करते है !
– दूसरी बात कोई भी सामान्य व्यक्ति किसी अनजान शहर में ऐसे-वैसे कदम उठाने से हिचकिचाता है क्योकि वो वहां अकेला है उसे अपनों के बीच वापस जाना है !
– उग्रता और उग्र होकर इतने विधवंसक कदम उठाना एक सामान्य व्यक्ति के बस की बात नहीं है !
– जिस तरीके से बोगी में महिलाओ व बच्चो को जलाने का प्रयास किया गया वो सामान्य लड़का नहीं कर सकता है ! उग्रता , क्रोध की पराकाष्ठा स्वीकार करते है पर कोई युवा यूँही किसी को भी, उस में भी सामान्य जनता की, जान नहीं ले सकता !

आपको लग रहा होगा के हम ऐसा क्यों कह रहे है तो इसका कारण ये है की आनुशासंहीन युवा को भड़काने उन में छुप कर , उनका भेष रख कर निसंदेह आसामाजिक तत्त्व अपना कार्य करते है ! इतना आतंक कोई आतंकवादी ही कर सकता है ! स्थानीय पुलिस को तो विशेष सतर्कता रखनी चाहिए साथ ही हमे ऐसी समस्याओ से निपटने का एक बेहतर उपाए ये भी लगता है की शिक्षा की नीव मजबूत करनी चाहिए शिक्षा सिर्क डिग्रीया लेना ही नही होता है शिक्षा हमे विवेक का प्रयोग , सही-गलत की पहचान भी करवाती है !

विन्ध्यागिरी ट्रेन पर जो हादसा हुआ वो बहुत ही दुखद था जो संख्या दर्ज़नो में बताई जा रही है वो हमने अपने वहीँ कार्यरत अपने परिचित से पूछी तो उन्होंने ३३० संख्या बताई ,,,, वहां रात भर रूककर सभी कर्मचारियो ने हताहत छात्रों को अस्पताल पहुचवाया तथा अन्य को मालगाड़ियो में बैठा कर रवाना किया गया !
अधिक प्रतिभागी होने से आधिक धन मिलेगा इस लोभ से प्रतियोगिता करवा रहे आधिकारियो ने और कुछ नहीं देखा ! कैसे प्रबंध होगा ये तब की तब पर डाल कर सबको बस बुला लिया गया ! अब भुगतेंगे तो वो जिनकी जीवन भर की पूँजी अब कभी नहीं वापस आएगी ! देश के काम जो युवा आते वो व्यर्थ की मौत मारे गए !

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