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“प्रीत करो तो ऐसी करो , जैसे दिन और रात मिल जाये तो साँझ भये , बिछुड़ जाये तो प्रभात !”
प्यार ऐसी भावना है जो हर किसी में होती तो है , पर बाहर आने की मात्रा में अंतर होता है ! कुछ लोग ऐसे होते है जो इज़हार करने में डरते नही और कुछ इसके बाहर आने से बहुत डरते है !
प्यार कितना सुन्दर आहसास है ये तब ही कोई अच्छे से समझता है जबकि उसने प्यार किया हो ! कुछ ऐसे भी होते है जो प्यार में सफल नही हो पाते है और वो झट कह देते है प्यार-व्यार कुछ नही सब स्वार्थी है पर उन्होंने प्यार शायद किया ही नही होता है ! प्यार लेन – देन की व्यवस्था नही है ! जब हम किसी से प्रेम करते है तो एक लौकिक के साथ परलौकिक भावना भी आ जाती है ! वो व्यक्ति हमे स्वयं लगने लगता है !
अभी जल्दी ही हमने T .v . पर रामकथा सुनी उस में बहुत ही सटीक बात कही गयी थी की ‘ये भी एक बड़ी खुशकिस्मती की बात है की, जब हम किसी को प्रेम करे और उसे इस बात का अहसास हो जाये ‘ .. क्योकि हम में से कई शायद ऐसे होंगे जिन्होंने प्रेम तो किया होगा पर किसी न किसी कारण से जाहिर नही किया होगा ! बहुत लोगो को न का डर भी लगता है , कुछ ऐसे भी होते है है जिन्हें न सुननी पड़ी हो पर अगर ऐसा होता है और कोई अपनी पसंद को ही गलत तरीके से लेने लगता है , तो ये तो बिलकुल गलत बात है , आप किसी में बुराइया निकालने लगे या ये कहे की सब स्वार्थी है तो इसका मतलब आपने उसे प्यार किया ही नही , अब आप उसकी नही अपनी ही निंदा कर रहे है !
एक दिन हम प्रेम की परिभाषा यूँही सोचने लगे की कैसे पता करे की ये प्यार है की आकर्षण तब एक ही बात समझ आई की जब हम किसी के गुण से , पद से , रूप से यानी किसी कारण से प्रभावित होकर मोहित होते है तो ये आकर्षण है उस गुण का …. पर जब हम सोचे की क्यों हम उसे इतना पसंद करते है और कोई निश्चित उत्तर नही पाते है पर एक जुडाव महसूस करते है तो ये निसंदेह प्यार ही है ! पर इस निष्कर्ष पर पहुचने के लिए बहुत समय लेना चाहिए क्योकि आकर्षण और प्यार का अंतर समझने के लिए बहुत समय लगता है !
प्यार जब नही होता है तब तक तो मन में लगता है ‘यार एक बार हमें भी तो हो ! सबको तो होता है हमको क्यों नही हुआ ?” पर जब होता है तो सोचते है ये न ही हुआ होता तो ही अच्छा था ! बहुत मिश्रित भाव आते है खासतौर से उनको जो इस श्रेत्र से डरते है , डरना सिर्फ ‘न’ के कारण ही नही होता और भी कई कारण होते है ! प्यार जिस भी उम्र्र में होता है समान वेग के साथ होता है , भावनाए , उत्साह सब समान होता है ! 18 साल के युवा में जो उत्साह हमने देखा वो 32 साल वाले में भी देखा है !
कभी – कभी बहुत हैरत भी होने लगती है की व्यक्ति कैसा अटपटा सा , अपने स्वाभाव से विपरीत व्यवहार करने लगता है ! चाहे किसी भी स्थान पर हो , gathering में हो तो वहां पर भी आँखे सब अच्छे से अच्छो को छोड़ कर उसको ही ढूंढती रहती है ! हम तो ऐसे peak time पर कोई समझदारी वाली बाते ऐसे प्रेम रोगियों से नही करते क्योकि ऐसा करने से आप सबसे अच्छे दोस्त से सबसे बड़े दुश्मन जैसे बन जाते है ! बहुत सारे लोग बावले से काम करके इस बात की सूचना सबको दे देते है की वो कहीं गुम हो गए है !
……खोया – खोया सा स्वाभाव , हर बात कम से कम दो बार में सुनना , अचानक तेज़ आवाज़ से चौकना , रस्ते में सामने आते परिचित को देख कर भी नही देख पाना ये सब सामान्य लक्षण होते है प्रेम में डूबे लोगो के ! पर हम में से चाहे कोई भी व्यक्ति खुद को कितना ही संयत रखना जानता हो , उस भावना को अपने तक ही क्यों न राज़ रखे पर उसकी आँखे सब राज़ खोल देती है ! चेहरा और आँखे दोनों ही लिफाफे के पते के समान होते है ! चेहरे के भाव बदल कर कोई हुनर मंद भले ही माहौल के अनुसार स्वयं को adjust करने का दिखावा कर ले पर आँखे ही वह दरवाज़ा होती है जिससे कोई भी आसानी से दिल और दिमाग में प्रवेश करके सारे राज़ पढ़ सकता है !
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