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काला धन – ” बीती ताहि बिसार दे “- ये कौन सा तर्क है ?

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अभी कई दिनों से काले धन पर बहुत ज्यादा चर्चा – परिचर्चा चल रही है ! धन लाये तो , लाये कौन ? जो धन लाने वाले है यानी ला सकते है उनमें से आधे से अधिक तो खुद ही अपना धन वहा छुपाये हुए है !

न मेरी न तेरी की तर्ज़ पर कुछ माननीयो ने बीच का रास्ता निकला की ‘ कुछ पर कर चुका दो और मन नही है स्त्रोत बताने का तो मत बताओ , चाहे तुम अब तस्करी से लाये हो , हत्या करी हो या कोई भी देश द्रोह किया हो जो भी किया हो ! ” बीती ताहि बिसार दे ” तो हम भी ये बाते बिसार देते है , आगे से ऐसा मत करना’ जैसे की ऐसा जो करे है वो कोई सोलह साल के पथभ्रष्ट युवा है जो विवेक का प्रयोग नही कर पाए हो और गलती कर बैठे हो!

हमारे मन में प्रश्न उठा की जब इतनी दिलेरी से कुछ पर हक़ जमा कर बाकी को भुलाने की बात की जा रही है तो क्यों न हमारे पिता जी की तरह ईमानदार लोगो को भी उनकी ईमानदार सेवा के लिए जितना आज – तक ‘कर’ दिया है उसका कुछ हिस्सा सरकार लौटा दे ? आज के समय में सिद्धांतो – उसूलो पर चलने वाले , ईमानदार जीवन जीने वाले लोग सबसे ज्यादा परेशान रहते है क्योकि वो बहुसंख्यक बेईमानो की आँखों में खटकते है ! तो जो कष्ट कुछ ईमानदार लोगो ने उठाये कभी ऐसी दिलेरी उनके लिए क्यों नही दिखाई जा सकती ? कम से कम इस बात में कोई तर्क तो है !
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