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क्यों भूली है महिलाये अपना मूल स्वभाव ? क्योकि उनका मूलस्वभाव “गुलामी वाला स्वभाव ” तक ही सीमित माना गया है !

My Thought
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एक लम्बे समय तक हमारा समाज पुरुष प्रधान रहा है , सभी निर्णय पुरुषो द्वारा लिए जाते रहे है ! आज कहने को तो यह कह दिया जाता है की बाहर की दुनिया के निर्णय हमारे (यानी पुरुषो के ) और घर के निर्णय पत्नी जी के …. पर क्या ये सच है??? कई परिवारों में घर में क्या खाने में बनेगा ये तक तो पुरुषो से ही पूछा जाता है तब ही खाना बनता है .. तो बाकि निर्णयों की बात क्या करे ? हमने कई बार देखा है की बहुत से पति बिना स्थान देखे पत्नियों से कह देते है ” तुम्हे अक्ल तो है नही , चुप रहा करो ” या तेज़ आवाज़ में एक छोटी गलती पे भी कह देते है ” बेवकूफ हो क्या ? “ ऐसा हमने एक बार नही अनेको बार देखा है ! अपने ही परिचितों में हमने ये व्यवहार पाए है ! पत्नियों के चेहरे तो लटक जाते है पर वो प्रतिवाद में कभी कुछ नही कहती कारण शायद , बचपन से हमेशा ही शासित होने की आदत पड़ चुकी होती है पहले पिता .. फिर भाई .. फिर पति और अंत में पुत्र के नियंत्रण में ! यही उन्हें अपना भाग्य लगता है क्योकि उन्हें अपने आस-पास भी अपने जैसे ही उदहारण दिखते है उनकी सोच ही बहुत संकीर्ण और संकुचित हो जाती है ! आज भी ऐसी महिलाये व परिवार पाए जाते है पर अब उनकी सोच दूसरी महिलाओ के जीवन को देख कर विस्तृत होने की सम्भावना रखने लगी है ! हमारे ही एक रिश्तेदार है जो अपनी पत्नी को सबके सामने बेवकूफ जैसे समानार्थी शब्दों से संबोधित करते रहते है और वो महिला अन्य अपने जैसी महिलाओ की तरह दूसरो को क्या करना चाहिए क्या नही के परपंच में पड़ी रहती है पर अपने पति में कोई परिवर्तन नही कर पाती है न हीउन्हें इसका विरोध करना “पतिव्रता ” स्त्री के लिए उचित लगता है ! ये एक महिला की कहानी नही है बल्कि हमने ऐसी बहुत सी महिलाये देखी है ऐसी महिलाये बहुत परपंची और दूसरो की कमिया व बुराइया देखने वाली बहुत होती है और ऐसा हमारे समाज में इसलिए होता है क्योकि वो अपने जीवन की कुंठा चिढ , गुस्सा ऐसे ही दूर कर पाती है !
आज के समय की हमारी माता जी के समय से तुलना की जाये तो काफी द्रुत परिवर्तन आये है ! कवियों की लेखनी ने कहा भी है की
” तुम श्रद्धा हो सेवा हो अमृत की प्याली हो ,
आधुनिके कुछ नही हो तो केवल तुम नारी ”
आज-कल कहा जाता है की महिला पुरुष कि प्रतिद्वंदी बन गयी है पर असल में वो उसकी पूरक है ! महिलाये अपना मूल स्वाभाव भूल गयी है !
वास्तव में क्यों भूली है महिलाये अपना मूल स्वभाव ?
क्योकि उनका मूलस्वभाव “गुलामी वाला स्वभाव ” तक ही सीमित माना गया है ! आज के समय में लडकियों की सोच में बहुत परिवर्तन हुआ है ! हमारे आस-पास की कई लडकियों चाहे वह WESTERN THOUGHT वाली हो या INDIAN THOUGHT वाली सबकी यही सोच है की पति जिस दिन सम्मान देना भूल गया तो उसे सम्मान देने को मजबूर कर देंगे क्योकि “आत्मसम्मान से बड़ा कोई गहना नही है ” हमारी माता जी के समय तक की जो पीढ़ी है , वो पति द्वारा लायी गयी किसी वस्तु को पत्नी का आहोभाग्य मान लेती थी ! जितनी बेईज्ज़ती कर दो एक साडी या गहना सबकी भरपाई कर देता है ! फिर महिलाये परपंच करती है ‘ अरे , चलो इतना ख्याल तो रखा ‘ हम मन ही मन कहते है क्या खाक ख्याल रखा , वो लाये है तो अपनी मर्ज़ी से ‘ खुश रहने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है !
एक बार हमारे एक नेट मित्र ने किसी बात पर कहा की ” जिस देश का शासन महिलाये चलाये उसे तो कोई नही बचा सकता , शायद ये कलयुग है तभी आज ऐसा होता है ” फिर हमने भी उसे एक तल्ख जवाब दिया था तथा तब से उसकी और हमारी वार्ता खत्म हो गयी ! ऐसे ही एक सफ़र के दौरान कुछ राहगीर बाते कर रहे थे जिस में उन्होंने इंदिरा जी के आराज़क निर्णयों से लेकर मायावती द्वारा पार्क में लगाये धन तक की आलोचना की !
जो भी निर्णय रहे हो पर इनमें उनका कठोर व मज़बूत प्रशासन ही तो है ! महिलाओ से चुप बैठने की ज्यादा उम्मीद की जाती है इसलिए चाह कर भी सकारात्मक पक्ष दिखता नही है ! हमने अपने निजी अनुभवों में देखा है की महिला आधिकारी , वहां के पुरुष आधिकारियो से ज्यादा कड़क होती है और इस कारण हमे माहोल बड़ा तनाव पूर्ण लगता है पर देखा जाये तो महिला अधिकारी ज्यादातर rigid इसलिए पाई जाती है क्योकि उन्हें हमेशा से ही उनकी योग्यता से नही लिंग से judge किया जाता है ! यह बात धीरे-धीरे उनकी व्यक्तित्व का एक हिस्सा बन जाती है और एक कठोर महिला ही सामने आती है ! कुछ लोगो के कथन रहे है की बड़े-बड़े युद्धों का कारण या जड़ महिलाये ही हुई है , तो इसमें महिलाओ का क्या योगदान है ये तो उन पुरुषो की मूढ़ता है की उन्हें अपने विवेक का प्रयोग नही आता या कहे की अपनी इन्द्रियों पर वश नही रहा उनका !
महिलाओ को हमेशा से ही एक कमज़ोर प्राणी माना जाता रहा है इसका कारण उनकी सबसे बड़ी शक्ति ही उनको सबसे कमज़ोर प्राणी बना देती है वह है उनकी जनन शक्ति ! हमने कहीं पढ़ा था की एक महिला को प्रजनन के समय उतना दर्द होता है जितना २० हड्डियों के एक साथ टूटने से होता है तो भला कैसे महिलाये कमज़ोर कही जाती है ! पहले के समय लडकियों को कूदने – फांदने , भारी सामान उठाने पर रोक – टोक थी इसलिए नही की बल का आभाव था बल्कि इसलिए की माँ बनने के समय उन्हें इन कारणों से स्वयं व भविष्य की संतान दोनों को समस्या हो सकती है ! परन्तु धीरे-धीरे यह आम धारणा बन गयी की वो शरीर से कमज़ोर होती है ! सभी पुरुष भी तो समान बल के नही होते ! एक बार हमारे class mate से हमारी थोड़ी बहस हुई थी जिस में उसने हमे एक लड़की होने पर कुछ कहा था तो हमने प्रतिउत्तर में कहा था ‘ बलवान , न पुरुष होते है न स्त्री , समय सबसे बलवान होता है ‘ जिन महिला प्रशासको की बात हमने कही वहा भी यही बात आ जाती है की जिसके साथ है सत्ता है , शक्ति भी उसी के पास होती है ! बहुत से लोगो को आज की लडकियों की यह बात पसंद नही आती है की ‘ वो अब लाज शर्म नही रखती ‘ ‘ क्यों?? क्योकि अब वो पहले की महिलाओ की तरह नही रह गयी है अब वो ज्यादा आत्मविश्वास से लबरेज़ है , bold है , हर चुनौती को आगे बढ़ कर स्वीकार करती है ! ये परिवर्तन पिछले २ दशक से ज्यादा तीव्र हुए है इसलिए अभी भी सभी लोग इस बराबरी को पचा नही पाते है !
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