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मंदिर के धन को प्रयोग में लेने से पहले जितना धन सरकार के द्वारा लगाया गया है पहले उसकी ओर ध्यान दे क्या वो धन सही तरीके से प्रयोग हुआ है ? उसके बाद …… (-जागरण जंक्शन फोरम)

My Thought
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अभी कुछ दिनों से पद्मनाभ स्वामी मंदिर से मिले अकूत धन पे बहुत चर्चा हुई है ! कई लोगो का विचार रहा है के इस धन को लोगो के कल्याण में लगाया जाये इसे मंदिर में रखने की कोई ज़रूरत नही है जनता निर्धन है उसे इसकी ज़रूरत है पर हमे लगता है के इस धन को प्रयोग में लेने से पहले जितना धन सरकार के द्वारा लगाया गया है पहले उसकी और ध्यान दे क्या वो धन सही तरीके से प्रयोग हुआ है ? जवाब है ” नही ” अगर सरकारी धन सही तरीके से लगता तो हमारी गंगा अभी भी मैली नही होती ! अगर ये मंदिर का धन भी सरकारी हाथो में जायेगा तो कोई शक नही की ये कुछ लोगो की प्रोपर्टी बढ़ाने का ही सिर्फ काम करेगा ! पर हाँ यदि किसी देश हित के कार्य में सरकारी धन अपर्याप्त हो तो ये धन प्रयोग में आ सकता है !
कुछ विचारक मानते है की जिस देश में लोग २ वक्त की रोटी भी नही खा पाते उस देश में ये धन कैसे जमा हो गया , पर वो ये भूल जाते है की भारत देश अपनी धार्मिक पहचान के कारण भी जाना जाता है है हम में से ज़्यादातर लोगो के पास जितना भी संभव धन होता है वो हम भगवान के कार्यो में ख़ुशी-ख़ुशी अर्पित कर देते है और यही कारण है की आज हमारे मंदिर इतने धनवान है !
एक समस्या हमे इसमें ये नज़र आती है की इससे मंदिर के महंतों व पंडितो के पास बिन बात की बिना रोक-टोक की सम्पति एकत्रित हो जाती है कौन कितना जप-तप भगवान की पूजा में कर रहा है ये उनके भारी-भरकम शरीर व उसपे पड़े कुछ सोने के जेवरो से पता चल जाता है ! इसके उपचार में ये हो की मंदिर का जो धन है उसके योग के साथ वो धन कहा-कहा गया इसकी पूरी सूचना मंदिर के एक बोर्ड पर अंकित होनी चाहिए क्योकि ये किसी की निजी संपत्ति नही है ! और गुरु जी जैसे लोग जो की अपने मुह से स्वयं को उच्च कहते है उनको कुछ जनहित के कार्य बाँट देने चाहिए जैसे की नक्सल प्रभावित शेत्रो में जा के शिक्षा का प्रचार- प्रसार करे , जहाँ किसान आत्महत्या कर रहे है सिर्फ कुछ रुपयों के क़र्ज़ के कारण वहां जा के उनकी मदद करे ऋण मुक्त कराये ये कार्य वो अपने हाथो में ही रखे पर सूचना पूरे देश को दे ! ऐसे कई समस्याए है जिसको सुलझाने में वो अपना खजाना लगाये … आखिर वो तो मोह-माया से दूर रहने वाले लोग है न , तो माया का सदुपयोग करे !
रही बात प्राचीन मंदिरों के धन की तो वो आज के तरीको से अर्जित नही हुआ है और वैसे भी प्राचीन मंदिरों के रख-रखाव के लिए बहुत धन की आवश्यकता रहती है तो ये काम सिर्फ वहां के रख-रखाव तथा भक्तो की सुविधाओ के लिए लगाया जाये , इन कामो में बहुत धन लगता है !

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