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उसको याद करके भूल जाना मुझे आता है , क्योकि मुझे खुद को समझाना आता है
हर पल में अचानक याद आ जाता है वो , पर हर पल में उसे भुलाना मुझे आता है !
मैंने उसे कभी नही देखा, पर न देख कर भी नज़र में बसाना मुझे आता है , फिर सारे अहसासों में डूब कर उबर जाना भी मुझे आता है , क्योकि मुझे खुद को समझाना आता है
कोई मुलाकात नही पर बातो का वो दौर मुझे याद आता है , फिर याद करके भूल जाना भी मुझे आता है , क्योकि मुझे खुद को समझाना आता है
वो मुझसे बात न करे तो कोई गम नही , पर दूसरो के करीब उसका जाना मुझे रास नही आता है , पर फिर भी पीछे हट जाना मुझे आता है, क्योकि मुझे खुद को समझाना आता है
उसका भवरे जैसा इधर- उधर जाना मुझे पसंद नही , पर तब भी कुछ कह कर चुप जाना मुझे आता है , क्योकि मुझे खुद को समझाना आता है
उसकी हर नाराज़गी पर सौ बार उसे मनाना मुझे आता है , पर उसके एक सवाल से एक अरसे की ख़ामोशी को ओढ़ जाना भी मुझे आता है, क्योकि मुझे खुद को समझाना आता है
न मिल कर भी मिलने का अहसास है मुझे , फिर उस अहसास को दबाना भी मुझे आता है , क्योकि मुझे खुद को समझाना आता है
इस रिश्ते को मान देना आता है पर खुद को अपमान से भी बचाना है ……. इसलिए……. उसे रोज़ भूल जाना मुझे ज्यादा सुहाता है ………….क्योकि मुझे खुद को समझाना आता है !
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