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‘हम वोट क्यों देते है ?’ एक बार किसी कारणवश हम वोट नही दे पाए ! वोट न देने के कारणवश मन में अफ़सोस हुआ और थोड़ी ग्लानी भी ! ग्लानी इसलिए क्योकि वोट एक ज़रुरी कर्तव्य है! मन में आया इतनी शिक्षा – दीक्षा प्राप्त की है तो वो दिखनी चाहिए ‘ आपके acts ‘ से जब ऐसी भावनाए मन में आने लगी तो स्वयं से प्रश्न किया की ‘क्यों इतना अफ़सोस हो रहा है’? इस वोट का क्या फायदा? जो भी सरकारे बनी है चाहे राज्य स्तर की या केंद्र स्तर की , क्या उनकी नीतिया तुम्हे संतोष देती है? जवाब आता है “नहीं” ! एक प्रश्न जो ज़्यादातर लोग उठाते है की सरकार भी तो हम ही चुनते है न , तो ये भ्रष्ट नेता जो आते है उनको हम ही तो वहां तक पहुचाते है ! ये सोचते ही वोट न देने का नही बल्कि वोट देने का अफ़सोस होने लगता है ! क्या ऐसी कोई पार्टी है जिसने धर्म व जाति , सिर्फ इन दोनों की ही बात करे तो , तो किसने ये पत्ते नहीं खेले ? देश में एक से एक बड़ी समस्याए है पर ये दो अबूझ पहेलिया बन गयी है ! कोई इन्हें सुलझाना नही चाहता बल्कि इन दोनों से पूरी जनता को उलझा कर रख दिया जाता है व पूरी कोशिश रहती है की जाति व धर्म का पर्दा गलती से भी आँखों से हट न जाये नहीं तो बाकि समस्याए नज़र आ जाएँगी !
हमारे संविधान की मूल प्रस्तावना में २ शब्द शामिल है, की हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष व समाजवादी देश होगा ! धर्म निरपेक्ष कह कर एक विशेष धर्म को अल्पसंख्यक कह कह कर हर पार्टी वोट बटोरती है पर पारसी , बोद्ध , जैन , सिख जैसे अन्य भी तो अल्पसंख्यक है तो इनके लिए इतनी नीतिया क्यों नही बनती , इनके नाम पर सभाए व आयोजन क्यों नही होते ? समाजवादी देश कह कर कहा जाता है की सबको आगे बढ़ने के सामान अवसर मिलेंगे , ये कह कर आरक्षण से और दीवार खड़ी कर दी जाती है ! आरक्षण दूर करने या खत्म करने की बात गलती से भी कोई नही कहता बल्कि हर दिन ‘ हम जीते तो फलां को इतने प्रतिशत आरक्षण मिलेगा ‘ का नारा लगता ही रहता है ! …… जो आम आदमी के मन में असली मुद्दा है उसको किसी की सुध नही मिलती ! नर्सरी के admission से लेकर , नौकरी पाने तक कितनी जगह रिश्वत देकर काम करवाने पड़ते है ! नौकरी मिल भी जाती है तब भी तबादला करवाने , फाइल आगे बढवाने के लिए रिश्वत दो , सत्यापन करवाने के लिए जो लोग आये उनको भी रिश्वत दो ! कौन सा ऐसा काम है जहाँ हाथ में हरा पत्ता न देना पड़ता हो ! कभी ऐसे समस्याओ की निपटारे पर कोई दल क्यों नही चर्चा करता ! ऐसे मुद्दे पर सामान्य जनता की चाहे वो किसी भी धर्म या जाति का हो , किसी भी लिंग का हो या आयु का सबकी राय वही मिलेगी बिना हाथ पोव जोड़े ही वोट मिल जायेंगे ! पर पिछले दिनों एक गैर राजनीतिक लोगो के समूह द्वारा ऐसे मुद्दों के निपटारे के प्रयासों को विफल करने की तरीके देख कर यकीन हो गया की कोई दल असल समस्याओ की लिए कितना गंभीर है , जो अन्य उन मुद्दों को उठाएगा उसके ऊपर ही कीचड़ उछाला जायेगा ! राजनीतिक दलों ने कहा की इन मुद्दों को उठाने के लिए राजनीति में वो आये पर क्या ऐसे मुद्दों को उठाना केवल नेताओ के अधिकार क्षेत्र में है ?
….माओवादी, नक्सलवादी विदेशी दुश्मनों के साथ मिलकर देश को नुकसान पहुचाने में लगे है इस समस्या को आगे बढ़ने से रोकने के लिए क्यों नही कोई कदम उठाता ! हर सामान्य नागरिक का नहीं पता पर हर जागरूक नागरिक का ध्यान इस मुद्दे पर है !
प्रस्तावना में एक अंश ये भी है की समानता रहेगी पर क्या ये समानता है – एक प्रोफेशनल डिग्री लिए युवा ५० हज़ार प्रतिमाह कमा रहा है वहीँ एक डिग्री कॉलेज में कई डिग्रीया लेकर बैठा युवा तदर्थ शिक्षक के पद पर ५ हज़ार कमा रहा है जब कुछ साल बीत जाते है तब भी वह १० हज़ार भी पार नहीं कर पाता ! क्या ये मुद्दा नही है ! इस पर अगर कोई दल ध्यान दे तो क्या युवा उस दल पर ध्यान नही देंगे ?
आज के समय सब दल एक – दूसरे पर उंगली ही उठाते रहते है कोई खुद एक आदर्श नहीं बनना चाहता ! कोई किसी दल की कमी पकड़ लेगा फिर एक से एक ओछी बयानबाजी शुरू हो जाती है ! एक दल का नेता जब अपने दल को छोड़ता है तो non -stop अनर्गल बाते करता है और जब अन्य दलों में ज्यादा लाभ नही देखता है तो वापस आकर इतना ड्रामा होता है की घृणा सी होनी लगती है ! किसी का कोई ठोस वयक्तित्व ही नहीं सब भेडचाल में है ! ऐसे में हम अगर वोट न दे तो क्या गलत है क्योकि वोट दे तो किसे ? अपने क्षेत्र में खड़े किसी पार्टी के नेता को अच्छा समझ के वोट देते भी है तो पता चलता है की उस दल के बड़े-बड़े नेता किसी अन्य दल से निकाले व्यक्ति को गले लगा के पार्टी में शामिल कर रहे है निकाले जिन आरोपों के साथ होते है उन्हें यह कह कर सही ठहराने का प्रयास किया जाता है की अभी आरोप सिद्ध नही हुए है … आरोप तो कई लोगो के सिद्ध नही हुए तो क्या उन्होंने वो जुर्म नही किया है …. हम सामान्य जनता कोई विवेक नहीं रखती है क्या ? सारी बुद्धि नेताओ के पास ही होती है क्या ? कोई किसी बड़े नेता का बेटा है तो कोई बेटी, उसके सारे पापो की किनारे करके स्वागत किया जाता है , किसी दल का नेता जेल में है तो भी वोट मागने का अधिकारी रहता है … एक आम नागरिक को नौकरी देते समय सब जगह उस व्यक्ति का आपराधिक रिकॉर्ड जांचा जाता है पर देश की बागडोर सम्भालने वालो पर कोई प्रतिबन्ध नही … हमारे क्षेत्र का नेता अगर अच्छा है तो क्या हम उस दल के अन्य दागी मंत्रियो को अनदेखा कर दे जो दल में शामिल है ! अगर कोई दल सदन में बहुमत नही भी पाता है तो अन्य दलो के साथ मिलकर कर सरकार बना लेता है तो कैसे जनता के मन की सरकार बन गयी ?? अंत तक प्रश्न वही खड़ा रहता है की आखिर हम वोट क्यों दे ? और दे तो किसे दे ?
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