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हाल ही में सेना कूच की खबर अचंभित करने वाली थी , मन में आया की क्या सबूत है इस खबर के, फिर टीवी , अख़बार , नेट सब जगह इससे सम्बंधित खबरे प्राप्त करके, एक प्रतिष्टित अखबार की इस गैर जिम्मेदाराना सनसनी पर क्रोध भी आया साथ में अफ़सोस भी ! अफ़सोस इसलिए की अपने ही देश की सुरक्षा सम्बन्धी लोगो की , जग हसाई करवाने का , अपने ही देश की प्रतिष्टा को कम करवाने के प्रयास पर ! उस सेना पर प्रश्न उठाए जो की , न होती तो हमारा देश इतना आगे न बढा होता , शत्रु भी जिस सेना के जोश और जज्बे को सलाम कर चुके है , वो सेना जिसने न सिर्फ अपने देश की स्वतंत्रता की रक्षा की वरन पडोसी देश को भी आज़ाद कराया है , वो सेना जो आज भी भीषण विपरीत परिस्थितियों में भी देश की हिफाजत कर रही है , वो सेना जिसके नव-सैनिक – नौजवान अधिकारी अभी भी एक अघोषित युद्ध में अपने देश को दुश्मन आतंकियों से बचाने में जाने गवां रहे है ! उस सेना की गतिविधयो पर सवाल ?? प्रेस का काम निसंदेह गलत कार्यो को प्रकाश में लाने का होता है पर बात जब देश की आन- बान – शान की होती है तो विशेष सतर्कता रखनी ज़रूरी होती है ! आम-जन अखबार व टी. वी. की खबरों से ही सामान्यतः अपनी राय बनाते है , बहुत कम होते है जो अपने विवेक का भी प्रयोग करते है इसीलिए लोगो के इस भरोसे का प्रेस को सम्मान करना चाहिए ! दूसरो के सही- गलत कार्यो को देखने से पहले स्वयं, के कार्यो का आंकलन करना चाहिए !
……………………. न्यायपालिका के निर्णय हमेशा ही सही रहते है इस बार का कदम भी इसी क्रम में स्वागत योग्य है ! देश की सुरक्षा सबसे पहले है ! फौजियों का जीवन सामान्य जन के जीवन से इसीलिए भिन्न रहता है क्योकि वो देश की सुरक्षा के सिपाही होते है उन्हें हर कदम पर गोपनीयता का पाठ पढाया जाता है ऐसे में उनकी किसी कार्यवाही को यूहीं अपनी मनमाफिक शक्ल देना बहुत निंदनीय है ! सेना सदा स्वयं को Active रखने के लिए अभ्यास करती ही रहती है , भिन्न – भिन्न विभागों में भी तो Mock Drill चलती रहती है ऐसे में सेना को बिन बात शक में लाना गलत है !
……………….. …. सेना के लोगो का वेतन उनकी विपरीत परिस्थितियों में कार्य करने की तुलना में कम ही होता है वैसे भी जीवन का कोई मूल्य नही होता और एक फौजी के जीवन का कोई ठिकाना नही होता ऐसे में उनके प्रति सामान्य जन के मान – सम्मान , विश्वास ही सबसे बड़ी पूँजी होती है , जो की एक सैनिक के अलावा और किसी को आसानी से नही मिलती ! ऐसे में अपनी सेना से, जो आम जन के लिए ही जान की बाज़ी लगाती है , उन समान्य जन का विश्वास डिगाना ये नैतिक रूप से भी गलत है !
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