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कहा गया है कि ऋतुओ के चक्र की भाती ही राज्यों का भी परिवर्तन चक्र चलता रहता है ! राज्य राजतन्त्र , निरंकुश राजतन्त्र , कुलीनतंत्र , अल्पतन्त्र , प्रजातंत्र में परिवर्तित होते रहते है ! किसी ने राज्य को ‘ दैवीय शक्ति ‘ माना तो किसी ने ‘ समझौता सिद्धांत ‘ फिर ‘विकासवादी सिद्धांत ‘ आया यानी राज्य क्रमिक विकास और उन्नति का परिणाम है !
प्राचीन चिंतको ने राज्य व शासको के लिए कई बाते कहीं है जो उम्मीद है की संसद की पुस्तकालय में रखी ही होंगी पर शायद किसी ने पढ़ी नही क्योकि ज़्यादातर नेताओ की कार्यशैलियो से पता चल ही रहा है की उनको अपने कर्तव्यों का कितना बोध है ! कुछ किताबो को पढ़ते समय लगा की ये बाते हमारे राजनीतिज्ञों को जाननी कितनी आवश्यक है यहाँ ऐसे ही कुछ विचारको क विचारो का ज़िक्र कर रहे है –
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सुकरात – सुकरात राजनीति को कला मानते थे जिसके लिए उनके अनुसार विशेष निपुणता की मांग थी ! उसके अनुसार राजनीतिज्ञों के लिए २ गुण आवश्यक है – !. जनहितैषी , २. बुद्धिमान !
हमारी सरकार कितनी जनहितैषी है ये तो हर दिन की बढती कीमतों से पता ही चल रहा है ! बात बुद्धिमानी की कि जाये तो हमारे नेता नक्सलवाद व हाल ही कि बंग्लादेशी समस्या के प्रति उनके ढीले रैवये से पता चल रहा है कि वो कितने बुद्धिमान है , शायद वो कश्मीर जैसे सुलगते वातावरण का पूरे देश में फैलने का इंतज़ार कर रहे है !
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प्लेटो – प्लेटो के अनुसार मनुष्य कि आत्मा में ३ तत्त्व होते है – विवेक , उत्साह , appetite ( भूख ) , और आत्मा के ये गुण राज्य में भी पाए जाते है ! इन्ही के आधार पर राज्य का निर्माण होता है ! जिस प्रकार व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले कार्य ‘ आत्मा ‘ से प्रेरणा लेते है , उसी प्रकार राज्य के सभी कार्यो का उदभव उन्हें निर्मित करने वाले मनुष्यों कि आत्माओ से होता है ! प्लेटो के शब्दों में ” राज्यों का जन्म वृक्षों या चट्टानों से नही अपितु उनमे बसने वाले व्यक्तियों के चरित्रों से होता है ! वीर व्यक्तियों का राज्य भी वीर होगा और कायरो का कायर !”
कालेधन कि बड़ी मात्रा में saving और उसे वापस न लाने के प्रयास से हमारे राजनीतिज्ञों का चरित्र पता चलता है ! तथा संसद में दागी लोगो कि मौजूदगी भी स्पष्ट करती है कि राज्य यानी सरकार का क्या चरित्र है !
प्लेटो के अनुसार राज्य में शासक वर्ग परम बुध्हिमान व्यक्तियों का होना चाहिए ! उसे विवेकशील होना चाहिए और उसमे प्रयाप्त स्नेहशीलता कि भावना भी होनी चाहिए ! प्लेटो के अनुसार राज्य रुपी नौका को खेने के लिए ज्ञानी , कुशल और निस्वार्थ नाविक कि आवश्यकता है , जो शासन चलाने योग्य हो , आकर्षणों से अविचलित रहे ! आदर्श शासक कि दुर्लभता को देखते हुए उसने कानून कि भी व्यवस्था की !
काननों की व्यवस्था तो हमारे यहाँ भी है पर सजा वो ही पाता है जो की किसी कुशल और तिकड़मी वकील को hire करने में असमर्थ हो ! ज्ञानी होने का पता तो तब चल ही जाता है जब कोई उनको ‘ आइना ‘ दिखाने का प्रयत्न करता है और वे सारी मर्यादा भूलते हुए निंदनीय शब्दों का प्रयोग करते है !
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अरस्तू – यह राज्य की सर्वोच्च सत्ता को, कानून में मर्यादा रेखा के अंतर्गत बांधता है ! अरुस्तू के मत में प्रजाजनों को कानून के शासन की अधीनता स्वीकार करनी चाहिए ! तभी प्रोटोकॉल की आड़ में नेता राजा जैसे रहते है और कानून बाकी देशवासियों के लिए बनाते है , और साथ ही तभी कानून कभी भी किसी नेता और उसके अजीज़ लोगो को सजा नही दे पाता है !
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टॉमस एक्वीनास – शासक को राज्य में बाहरी शत्रुओ से समाज की रक्षा के लिए सदेव सजग रहना चाहिए , राज्य में जीवन को नियमित करने के लिए जनसख्या पर आवश्यक नियंत्रण रखना चाहिए , सडको को सुरक्षित और चोर डाकुओ के उपद्रव से मुक्त रखना , दरिद्रो के भरण पोषण की व्यवस्था करना आदि भी शासक के कर्त्तव्य है !
बाहरी शत्रु से कितनी रक्षा हो रही है ये तो आज – कल असाम वालो को देख कर पता चल ही रहा है , वोट बैंक के लालच में बंगलादेशियो को बाहर नही किया जा रहा है ! सड़के कितनी सुरक्षित है इस बात का पता इस से ही चलता है की लडकियों के साथ न केवल अभद्रता की जाती है वरन खुलेआम सामूहिक रूप से फुर्सत से की जाती है और पुलिस दूर-दूर तक नही रहती है ! चोर हर दिन गहने चोरी करके भागते है और पुलिस कभी पीड़ित पक्ष को वो उपलप्ध नही करा पाती है! दरिद्रो के भरण पोषण की व्यवस्था कि बात करे तो तभी एक तरफ अनाज सड़ता रहता है और दूसरी तरफ लोग भूख से मर जाते है !
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मैक्यावाली – मैक्यावाली का आदर्श शासक वह है जो किन्ही भी उपायो से राज्य कि शक्ति , सम्मान और शान को बढाता है , जो राज्य का विस्तार कर उसे सम्मान कि चोटी पर पहुचाता है ! उसने बताया है कि मनुष्य मानवता और पशुता के अंशो से मिलकर बनता है , अतः राजा को इन दोनों के समान कार्य करना चाहिए यानी लोमड़ी कि चालाकी और शेर कि शूरता रखते हुए राजा को अपने उद्देश्यों पर बढ़ते जाना चाहिए ! उसे देश हित में कुछ भी करना चाहिए ! दूसरी शिक्षा के तौर पर मैक्यवाली कहता है कि शासक को दयालु होते हुए भी इस बात पर ध्यान रखना चाहिए कि कोइ उसकी क्षमाशीलता का अनुचित लाभ न उठाये ! आवश्यकता पड़ने पर उसे क्रूर होने में संकोच नही करना चाहिए ! अतः उसका कर्तव्य है कि वह छल , कपट , हिंसा आदि का प्रयोग करते हुए भी ऐसे कार्य करे जिनसे उसकी महानता , उत्साह , गंभीरता और सहनशीलता प्रकाश में आये तथा वह एक सज्जन और धर्मपरायण व्यक्ति कि ख्याति अर्जित करे!
मैक्यावाली के कहे अनुसार लोमड़ी कि चालाकी तो हमारे राजनीतिज्ञों में कूट – कूट कर भरी है परन्तु सिर्फ अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए ! क्षमाशीलता भी है परन्तु हर उस व्यक्ति के लिए जिसने देश को नुकसान पहुचाया है … बात चाहे अफज़ल गुरु या कसाब को फासी देने कि हो या जो देश के अन्दर खुद को ISI का एजेंट कहते है उनको सबक सिखाने कि हो या फिर देश के बेईमान लोगो को सजा दिलाने के लिए हो , सबके लिए दया है !
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भीष्म – भीष्म जी ने महाभारत में शासक के प्रमुख कर्तव्य के तौर पर कहा है कि प्रजा कि सम्पन्नता , सुख शांति और समृद्धि ही राजा का एक मात्र लक्ष्य है ! शासक का प्रत्येक कार्य प्रजा कि प्रसन्नता और उसके कल्याणार्थ ही होना चाहिए ! उस राजा को सर्वश्रेष्ठ कहना चाहिए जिसके राज्य में प्रजा पिता के घर पुत्र कि भाती निर्भय विचरती है !
भीष्म जी ने ये भी प्रतिपादन किया है कि योग्य और अत्याचारी राजा का जनता विरोध व सशस्त्र विरोध भी कर सकती है !
निर्भय लोग रहते है पर वो जो कि आपराधिक होते है उन्हें किसी कानून या सजा का भय नही होता है ! जब कोई गैर सत्ता वाला व्यक्ति उनका विरोध करता है तो उसका वही होता है जो टीम अन्ना और बाबा रामदेव के साथ पिछले १-२ साल में हुआ ! एक तरफ महिला अधिकारों कि बात कि जाती है , वही दूसरी तरफ सत्ता में मुख्य पद पर आसीन लोग जिनके पास असीमित शक्ति है वे ये बयान देते है कि लडकियों को कब बाहर जाना चाहिए कब नही बजाय इसके कि शहर में पुलिस का पहरा बढाया जाये , गश्ते बढाई जाये , उनके हर रोड पर पिकट बनाये जाये ! लोगो में लिंग अधारित भेद-भाव कि भावना बढाई जाती है ! फिर एक सर्वेक्षण किया जायेगा जिसमे लडकियों का शिक्षा अनुपात व सामाजिक भूमिकाओ में समर्पण आदि पिछड़ने वाले डाटा प्राप्त किये जायेंगे और तब इन बातो में सुधार क लिए करोडो कि परियोजनाए बनायीं जाएँगी ताकि फिर से पैसा खाने का मौका मिले !
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कौटिल्य – कौटिल्य ने अपनी किताब ‘ अर्थशास्त्र ‘ में कहा है कि “यदि राजा सम्पन्न है तो उसकी समृद्धि से प्रजा भी सम्पन्न होती है ! राजा का जो शील हो , वो प्रजा का भी शील होता है ! यदि राजा उद्यमी और उत्पादनशील होता है , तो प्रजा में भी वे गुण आ जाते है ! यदि राजा प्रमादी हो , तो प्रजा भी वैसी ही हो जाती है !”
हमारे देश का बढ़ता भ्रष्टाचार इसी का परिणाम है कि हमारे सत्ता में बैठे लोग ही देश को खोखला कर रहे है और उससे भी बड़ी बात जिनके भ्रष्ट कारनामो का खुलासा होता है वो भी ४ दिन जेल में बंद हो कर बाद में उन पैसो का पूरा -पूरा लुत्फ़ उठाता है !
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शुक्र – शुक्रनीति में उल्लेखित है कि शासक के ८ प्रकार के कर्तव्य है जिनमे दुष्टों को दंड , प्रजा का पालन , शत्रुओ का मर्दन करना शामिल है ! कहा गया है कि शासक को प्रति वर्ष गावो , शहरो , देश का दौरा करना चाहिए जिससे कि उसे पता लगे कि उसकी प्रजा में कौन प्रसन्न है और किन्हें उसके कर्मचारियों ने सताया है !
दंड और पालन का उद्धरण तो बता ही चुके है ! रही बात पता करने कि की किसने जनता को सताया है तो आज- कल की जनता काफी smart हो गयी है तो शासको को कष्ट नही देती खुद उनके पास जा- जा के अपने कष्ट बता देती है पर सुविधाए चुकी इंसान को आलसी बना देती है शायद इसलिए सरकार और नेता लोग आलस्य में ही डूबे रहते है और जनता की फ़रियाद सुन कर भी अनसुनी कर देते है ! गाँव में बाढ़ आ के किसानो का बेशुमार नुकसान करती है , फिर वही गाँव गर्मियों में सूखे के भी शिकार हो जाते है पर हमारे नेताओ को ये होश नही आता कि उस पानी को कैसे हितकारी बनाये ! अन्य समस्याओ के निदान के लिए योजनाये आयी तो है पर जिनके लिए आती है उनके पास जाते- जाते करोड़ कि संख्या हज़ार में बदल जाती है ! सदन में बैठ के नेता खुद को किसान परिवार का बताके उत्तेजक भाषण तो दे देते है पर उन लोगो के लिए कुछ नही करते !
कर ( tax ) के लिए भी शुक्रनीति में उल्लिखित है कि कोष का जो धन भोग विलास के लिए प्रयोग किया जाता है वह “दुःख” का कारण बन जाता है ; स्त्री और पुत्रो के लिए प्राप्त कर धन से शासक “नरक” को प्राप्त करता है ; जो अन्याय से कोष का संग्रह करता है वह पाप का भागी होता है !
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एक अच्छी सी पकती हमने पढ़ी थी जो कि एक दम सटीक है कि –
Leadership is doing what is right even when no one is watching.
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