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मीडिया को लोगो को आस- पास की घटनाओ से जागरूक करवाना चाहिए न की खौफज़दा

My Thought
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पिछले कुछ दिनों में बलात्कार की घटनाओ से पूरा भारत उबाल में है ! पर ये घटनाये थम नही रही इससे सब बहुत चिंतित है ! पिछले दिनों एक बच्ची के साथ हुई घटनाओ से उन दकयानूसी लोगो को , जो कपड़ो को दोषी मानते थे , सन्देश गया की कपडे नही लोगो की नज़र में खराबी होती है ! इन घटनाओ पर कई चर्चाये व परिचर्चाए लगातार हो रही है ! परन्तु हमारा ध्यान इन घटनाओ के अतिरिक्त इन खबरों के अन्य परिणामो पर भी जा रहा है ! वो यह की मीडिया इन घटनाओ को कवर करने के अलावा उन बातो को भी कवर करे जिनमे महिलाओ ने ऐसी हरकतों का पूरे आत्मविश्वास से सामना किया हो ! ऐसा नही की ऐसी घटनाये होती नही है या प्रकाश में नही आती है पर न जाने क्यों मीडिया उसे थोडा कम समय देता है !
दिन रात ऐसी घटनाओ का टी.वी पर दिखाया जाना बहुत ज़रूरी तो है पर इससे महिलाओ की बेचारी वाली छवि भी बहुत दृढ़ हो रही है ! जिन बंधनों से बहुत मुश्किल से निजात मिल रही थी वो बंधन फिरसे शिकंजा कसते जा रहे है ! चूकि कभी लडकियों की बोल्ड इमेज वाली खबरे मीडिया में नही आती या कम ही आती है तो आम जन अपनी बेटियों को हिम्मत व बुद्धि से मुकाबला करने के बजाय यह शिक्षा दे रहा है की “देखो अकेले जाओगी या अकेले रहोगी तो ऐसा तुम्हारे साथ भी हो सकता है ” !
जो वर्ग बहुत मुश्किल से अपनी बेटियों को पढने भेज रहा था वो अब पुनः विचार करने लगा है की ” पहले लडकिया घर में रहती थी तो सुरक्षित रहती थी इसलिए हमे अपनी बेटियों को ज्यादा अवसार देने के फेर में बाहर नही निकले देना चाहिए “!
आज क्राइम serials की होड़ लगी हुई है जिसमे अलग-अलग तरीके से छली गयी लडकियों की कहानी होती है ! इसका एक अच्छा पक्ष ये है की लोगो में समझ बढती है की उनको कैसे संभल कर रहना चाहिए , परन्तु दूसरा पक्ष ये भी है की ऐसे serials की वजह से लोगो का ट्रस्ट अन्य लोगो पर से खत्म हो रहा है , एक शक्की सा कीड़ा मन में घर कर चुका है ! प्रभाव ये पड़ा है की लोग अपनी लडकियों को ऐसी पढाई करवाना चाहते है जो घर के आस=पास हो , NCC – NSS में नही भेजना चाहते क्योकि उन्हें अकेले रहना पड़ेगा , sports नही पसंद करते , educational tour पर भेजने से कतराते है ! अनजाने में ही सही दमन और संकीर्णता फिर से जगह करने लगी है ! मीडिया को इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए शोषण वाली घटनाओ के अतिरिक्त जाबाज़ी वाली घटनाओ को भी दिखाना व बताना ज़रूरी है !
बीच में एक मुद्दा इन्ही घटनाओ के खौफ से उठा था की लडकियों की शादी जल्दी हो जानी चाहिए ! यानी सब लडकियों पर एक घटना का असर , और ऐसी मांग उसी वर्ग ने उठाई थी जो १२वि की शिक्षा भी बहुत मुश्किल से लडकियों को दिलवाता है ! ऐसी कई लडकिया है जो आस-पास के गाँव से शहरों में पढने आती है ये कदम उनके घरवालो ने ‘समाज में पहचान’ की theory से प्रभावित हो कर उठाया था परन्तु सिर्फ इन्ही घटनाओ की चर्चो से उनका खौफजदा होना स्वभाविक है ! ये बात तो ग्रामीण परिवारों की है परन्तु अगर शहरी परिवारों पर भी नज़र डाले तो उनके विचार भी बहुत कुछ ऐसे ही मिलेंगे जैसे आज कई परिवार अपनी बेटियों को प्रोफेशनल कोर्स तो करवा रहे है परन्तु रोज़गार के लिए शहर से बाहर नही जाने देते क्यों ?? ” क्योकि ….. देखा नही ज़माना कितना ख़राब है रोज़ अखबारों में और चेनलो पर क्या खबर आती है ? ” जो लडकिया अपनी क़ाबलियत को सिद्ध करना चाह रही है उन्हें खुद को enhance और explore करने का मौका ही नही दिया जा रहा क्योकि चारो तरफ एक ही बात गूंज रही है – बलात्कार व छेड़खानी !
छेड़खानी की घटनाओ से कोई लड़की अछुती नही है ! अभी कुछ ही दिन पहले हम भी अपनी cousin के साथ रिक्शे से जा रहे थे और दो लड़के बाइक से पीछे लग लिए तो हमने चलते चलते अचानक आगे आने वाले थाने के दरवाजे पर रिक्शा रुकवा दिया और जैसे ही थाने के दर्शन उन्हें हुए वो गाड़ी तेज़ करके भाग लिए ! ऐसा निर्णय लेने की शमता हमे रोज़ बाहर निकलने और अच्छी – बुरी घटनाओ से 2 – 4 होने के बाद ही आई है ! जब लडकिया घर से निकलेंगे ही नही तो सही – गलत समझेंगी कैसे ? सबके आस- पास ही ऐसे तत्त्व मौजूद रहते है परन्तु लडकियों को ‘डरने’ की नही ‘लड़ने’ की शिशा देनी चाहिए ! किन परिस्थितियों का कैसे सामना किया जाये ये बताने की आवश्यकता है ! जहाँ बल काम आये वहा बल प्रयोग करो , जहा बुद्धि काम आये वहां बुद्धि का प्रयोग करो ! मीडिया को अन्याय की घटनाओ के साथ ही अन्य लडकियों व उनके परिवारों का मनोबल बढ़ाने वाली घटनाये भी फोकस में लानी चाहिए ! लोगो को आस- पास की घटनाओ से जागरूक करवाना चाहिए न की खौफज़दा !

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