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वन्दे मातरम बकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा लिखित गीत ! आज़ादी के समय स्वदेशी आन्दोलनो में प्रयोग हुआ ! क्रांतीकारी इसे बोल कर ऊर्जा से ऒत- प्रोत हो जाते थे उन्हें अपनी देश की आज़ादी की जंग में साहस और बल मिलता था ! अब जब उनकी अमूल्य कुर्बानियों के बाद देश आज़ाद हुआ तब उसी देश की आज़ाद हवा में सांस लेने वाले लोग उस वन्दे मातरम को इसलिए गाने से मना करते है क्योकि वो अब उनके धर्म के खिलाफ है ! जिस शब्द का धर्म से कोई लेना – देना ही नही था सिर्फ देश भक्ति के लिए बनाया व गाया गया अब वही वाक्य को धर्म से जोड़ दिया गया है ! कहने की कोई बात ही नही बचती है की ये कितने शर्म की बात है !
कुछ लोगो का कहना है की ये जिद बना दी गयी है की सबको ये गाना है , तो किसी को लगता है की ये Ego का विषय बना दिया गया है की सबको गाना ही है ! जिनको ये गाने से परहेज नही है वो ये कहते है की जो वर्ग विशेष नही गाना चाह रहा है उसे गाने को बाध्य नही किया जाना चाहिए ! देश भक्ति तो मन में होती है ज़रूरी नही की जो गा रहा है वो देश भक्त ही हो !
निश्चित रूप से ये सही बात है की ये किसी की देश भक्ति का पैमाना नही है ! परन्तु इसे अगर हमारे नीति निर्माताओ यानी उन लोगो ने जिन्होंने स्वयं देश की आज़ादी में योगदान दिया था उन्होंने राष्ट्रगीत जैसे प्रतीकों आदि का निर्माण किया है तो व्यर्थ ही नही किया ! हर देश में विभिन्नताए होती है ! परन्तु वही देश सफल है जो एक जैसा सोचते है ! राष्ट गीत , राष्ट्र गान , राष्ट्र चिंह आदि ये इसलिए बनाये गये है ताकि उस विविधताओ भरे देश में कुछ बाते ऐसी हो जहाँ ना धर्म बीच में आये , न जाति का अंतर हो , न लिंग विभेद हो , न राज्य सीमओं का बँधन हो ! इसी समानता की भावना को सब लोगो में भरने के लिए सबको एक छत के नीचे लेन के लिए , एक ज़मीन पर खड़ा करने के लिए ये सब राष्ट्रीय प्रतीक बहुत – बहुत आवश्यक है ! न गाने वाले अगर fundamental right का हवाला देते है तो ये बात भी नही भूलनी चाहिए की इसे गाना हमारी fundamental duty भी है !
देश भक्ति दिखावे के लिए नही मन में होती है या मन में आदर रखना ज़रूरी है , दिखावे की क्या ज़रूरत ?
अगर सबके विचार से देखो तो सब अपने को सही ही ठहराते है! ….. सिर्फ मन की बात नही कुछ “मर्यादाये” भी होती है ! जिनका पालन आवश्यक होता है ! जब कोई धर्मिक स्थान जाता है तो वो चप्पले बाहर उतार के जाता है क्यों ? क्योकि वो उस स्थान की मर्यादा है जो प्यार मन में है वो हम ईश्वर से ऐसे ही जताते है उस स्थान के नियमो का पालन करके ! अगर कोई बेटा अपने पिता के सामने बैठ कर शराब व सिगरट पिए और कहे की सम्मान तो बहुत करता हूँ पर मन में है ! तो कैसा लगेगा ? ऐसा आचरण ना अपनाना ये हमारी मर्यादा कहलाता है ! हमारे प्रेम को ये मर्यादाये , ये नियम अभिव्यक्त करते है !
इसलिए राष्ट्र गीत का गान हमारे देश के प्रति सम्मान और प्यार को दर्शाता है ! जिस प्रकार से हम वर्ष में कुछ खास दिन मना कर अपने प्रिय जानो को भेटे देते है वो इसलिए की ऐसे हम अपने प्यार को व्यक्त करते है ! ईश्वर के लिए उपवास रखते है क्योकि ऐसे हम अपने प्यार को उनसे प्रकट करते है ! उसी प्रकार राष्ट्र गीत गा कर हम अपने देश से अपने प्यार का इज़हार करते है !
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