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भारत में घटित होती महिलाओ के खिलाफ घटनाये , किस बात का प्रतीक है ? बहुमत का मत है की ये घटनाये , इसलिए हो रही है क्योकि लोगो की मानसिकता बदल गयी है ! भारतीय संस्कृति पर अब गर्व करने के लिए कुछ नही है ! ये सब बाते मन को बहुत व्यथित करती है ! अगर भारतीय संस्कृति पर गर्व करने वाला नही है तो किस संस्कृति पर गर्व करने वाला है? पाश्चात्य संस्कृति पर ?? क्यों ? क्या अमेरिका में महिलाओ के खिलाफ ऐसी घटनाये नही होती है ? वहां तो इस बात पर भी rape हो जाते है की वो लेस्बियन है , उसे महिला और पुरुष के सम्बन्धो को समझाने के नाम पर ऐसा किया जाता है !
कई बार लोग महिलाओ के कपड़ो को ही कारण मान लेते है , पर क्या मुंबई शक्ति मिल की पीड़िता , गाव की वो दो बहने जिन्हे फांसी पे लटका दिया गया था या जो लखनऊ मोहनलालगंज में महिला के साथ हुआ … इनमें से कौन पाश्चात्य परिधान पहने था ? जो दो बहने थी वो तो गाव की रहने वाली थी शहरी रंग- ढंग तो था नही उनका .. तो क्या वो बच गयी ???? मोहनलालगंज की पीड़िता तो दो बच्चो की माँ थी परिधान के नाम पर वो भी सूट ही पहने थी तो क्या वो बच गयी ??? “पुरुष का साथ ” , “दिन का वक़्त” , “परिधान” कोई भी कारण बता कर लोग आज की ही महिलाओ को ही कुछ न कुछ ज़िमेदार ठहरा देते है ! उपरोक्त की दो घटनाओ की महिलाये शहरी नही थी ! गावो में या छोटी जगह में निवास करती थी ! क्या रियायत मिल गयी उन्हें ???? ‘पुरुष के साथ ही निकलना चाहिए’ ‘ दिन में ही निकलना चाहिए’ तो क्या शक्ति मिल पीड़िता बच गयी ?? वो तो एक “पुरुष” सहकर्मी के साथ official कार्य कर रही थी , शाम के 5 बजे थे जब की उजाला बरक़रार रहता है उस वक़्त वो वहां गयी थी … तो क्या पुरुष साथ का या दिन के उजाले का उसे कोई लाभ मिला ?? सूट पहनने का उसे फायदा मिला ? A Big Noooo !! मुद्दा कपड़ो का नही है पुरुष सुरक्षा का नही है , दिन के उजाले का भी नही है ! बात है मानसिकता की ! आज भी मुझे भारतीय संस्कृति पर बहुत गर्व है ! आज के परिप्रेक्ष्य में ये हमारे संस्कार से ज़्यादा कानून का मुद्दा है ! यानी ये घटनाये सख्त कानून के ना होने के कारण है ! मोटे-मोटे कारणों पे नज़र डाले तो –
(1) सख्त कानून का आभाव – जैसे ही फांसी की बात आती है .. मानवाधिकार वालो का रोना चालू हो जाता है ! अपने आपको बुद्धिजीवी दिखने के फेर में ये बेवजह व्यवधान उपस्थित करने लगते है ! स्वयं असुरक्षित माहोल से कोसो दूर होते है इसलिए वास्तविकताओं को देख के भी अनदेखा करते है !
(२) दूसरा कारण कानून निर्माताओ के तौर पर गलत लोगो का राजनीति में होना या राजनीतिज्ञों के आस पास के खास लोगो में ऐसे लोगो का जमावड़ा ! – सामान्य जनता हमारे राजनीतिज्ञों की रौबदार जीवन शैली से बहुत प्रभावित रहती है उनका राजाओ जैसा जीवन आम जन को भौचक रखता है मानव स्वाभाव है की वो चमक- धमक के प्रति आकर्षित रहता है इसीलिए वो अपने इन “राजाओ ” का अनुकरण करती है ! जब ये आम के “खास” लोग गन्दी ज़ुबान का प्रयोग करते है तो आम जान को भी उनके जैसा दिखने के लिए या उनके स्तर पर खुद को महसूस करने के लिए वो भी वैसी ही जुबां का प्रयोग करने लगते है क्योकि गलत बात पे रोक- टॉक होने पर ही वो उसके गलत होने का अहसास कराती है , जब कोई रोकने वाला ही नही तो वो उन्हें भी ये गलत नही लगता ! जब ऐसे ऊचे पदो पर आसीन लोग ऐसे कार्य करते है और उन्हें सजा तो दूर उनकी वही चमक – धमक में ज़रा सी भी हानि नही होती तो आम जन को यही सन्देश जाता है की ये गलत काम गलत है ही नही क्योकि उनके “आदर्श ” ऐसा कर रहे है और उन्हें कोई तनिक भी गलत नही ठहरा रहा है !
………… ऐसे आम के खास लोगो का दागी जीवन लोगो को सही लगने लगता है और वो भी इसी “सही ” को अपनाने लगते है ! यथा राजा तथा प्रजा की तर्ज पर .. लोग भी वैसे ही बनने का प्रयास करते है जैसा की उनका राजा या शासक होता है !
ये दो मुद्दे सबसे प्रमुख है क्योकि लोगो की मानसिकता इन्ही का परिणाम है ! आप हर शख्स को व्यक्तिगत रूप से नैतिकता का पाठ नही पढ़ा सकते है इसलिए उनके आदर्शो पर ध्यान देना चाहिए उन्हें क्या दिख रहा है इस पर ध्यान देना चहिये !
… क्या कोई कड़ा दंड ऐसे लोगो को मिलता है ?? कौन सा ऐसा उद्धरण है जहाँ तुरंत दंड मिला हो ! ऐसा नही की केस चले ही नही और दंड घोषित हो जाये ! बात ये है की केस चले पर एक निश्चित अवधि में खत्म हो , १ महीना प्रयाप्त होना चाहिए ! जो जितने उच्च पद पर आसीन हो उसके चरित्र पर , उसके दागी जीवन पर उतना ही ध्यान देना चाहिए ! कभी भी किसी भी कीमत पर criminal record वाले व्यक्ति को इस आम जन की सेवा के क्षेत्र “राजनीति ” में आने नही देना चाहिए ! जनता की सेवा के और भी रास्ते है !
राजनीतिक जीवन के व्यक्ति की सजा ज़्यादा होनी चाहिए क्योकि वो एक role model बन जाता है ! उसके दंड का सन्देश आम जन तक ज़्यादा गहरा पहुंचेगा ! और राजनीतिक लोगो को भी इसे स्वीकार करने में ज़्यादा आपत्ति नही होनी चाहिए .. अगर वो वास्तव में जनता को समर्पित है तो!! स्वयं पर जिसको भरोसा होगा वो कभी भी इसका विरोध नही करेगा !
ऐसी घटनाये इसी बात का घोतक है की लोगो को कड़ा सन्देश नही पहुंच रहा है ! उनके जीवन की कालिख उनको गलत नही लग रही है क्योकि वो जस के तस मौज में है ! सामाजिक स्वीकृति और अस्वीक्रति ही किसी कार्य को नैतिक और अनैतिक घोषित करती है !
गलत के साथ नम्रता का व्यवहार ही इन घटनाओ का कारण है !
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