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पब्लिक सर्विस कमीशन भवन , लखनऊ … बड़ी-बड़ी बाते !!

My Thought
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पब्लिक सर्विस कमीशन, लखनऊ … बड़ी-बड़ी बाते !!
काफी समय बाद अपने ब्लॉग पर सक्रिय हुए है, वक़्त चाहे कम बीता हो या ज़्यादा खुद को अभिव्यक्त करके अच्छा लगता है!
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हम पहले भी खुद के अनुभवों को यहाँ साझा कर चुके है, आज भी करने जा रहे है! हम एक प्रतियोगी छात्रा है जो मुख्यतः राज्य सेवा आयोग की परीक्षाओ पर केंद्रित है! हम एक PH उम्मीदवार है ! case history ये है की हम पैर में bone cyst से पीड़ित रहे है और इसके इलाज़ में हम कई आपरेशनों से गुज़रे फिर ‘दुनिया की नज़रो में कमियों के बावजूद भी’ हमें पता है की हम एक perfect life जी रहे थे क्योकि हमे पता है की हम उन परिस्थितियों से गुज़रे है जिसमें हम चलने क्या खड़े होने की भी कल्पना नही कर पाते थे! समय के साथ बैसाखियों से कैलिपर तक का समय तय किया , जिसमें हम कैलिपर की मदद से पूरी तरह से आत्मनिर्भर जीवन जीने लगे ! अपने सपनो को पूरा करने के लिए हमने हर प्रतियोगी की तरह कोचिंगों, किताबो की दुकानो , सेमिनार्स , वर्कशॉप्स सब जगह ईरान से तूरान तक अपने बल पर rotate होते रहे है !
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हमने कभी भी किसी भी तरह से किसी का फेवर नही लिया , अपनी विपरीत परिस्थितियों का कोई लाभ या सहानुभूति नही ली क्योकि हमे किसी की भी सहानुभूति की ज़रुरत कभी रही भी नही! हमारे exams के centers लखनऊ के भिन्न-भिन्न क्षेत्रो में पड़े है एकदम बीहड़ में जहाँ से आते वक़्त ट्रांसपोर्ट की अव्यवस्थाओ से दिमाग घूम जाता था ! बस में खड़े होकर भी सफर तय किया है, पर हमने वहां भी, कहीं भी कभी भी अपने पैर का advantage नही लिया यद्यपि हम गलत नही होते, पर हम face कर सकते थे तो वो सब face किया!
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इसी क्रम में १० मई को हम pcs की परीक्षा में भी सम्मिलित हुए पर इस बार कहानी में एक नया मोड़ आ चुका था, वो यह की अप्रैल लास्ट सप्ताह में उसी पैर में, फिसल कर गिरने के कारण फ्रैक्चर हो गया था , घुटने के नीचे की दोनों हड्डिया टूट गयी थी जिसका ऑपरेशन हुआ तथा प्लेट पड़ी ! pcs की तरह एक प्रतीक्षारत परीक्षा समीक्षा अधिकारी की होनी थी ! लेकिन टांके लगे होने के कारण हम वो नही दे पाये ! सारा ध्यान psc पर आ गया था ! स्वभाविक है तैयारी प्रभावित हुई थी क्योकि शारीरिक पीड़ा के साथ हम मानसिक पीड़ा से भी गुज़र रहे थे ! ये फ्रैक्चर हमारे सपनो पर ग्रहण जैसा था , क्योकि हमें पता है की हम फिर वही सब से गुज़रेंगे जो एक बार झेल चुके है , ये साल इसी में निकलेगा ! सही में…. हम भावनात्मक रूप से बहुत कमज़ोर हो गए थे ! सारी उम्मीदे खत्म होने के बाद हमने खुद को बहुत मुश्किल से शांत किया और फिर से होप्स जगायी! हमने अपने दिमाग को बुरे विचारो से दूर रखने के लिए जितना भी हो पढ़ने और १० मई को फोकस करने के लिए समझा लिया था ! ७ मई को टांके कट गये, अब हम निश्चित थे एग्जाम के लिए ! और सबसे बड़ी तस्सली ये थी की हमारा सेंटर पब्लिक सर्विस कमीशन की बिल्डिंग में था ! जब सेंटर पढ़ा था तो एक ठंडी सॉस ली कि वहां तो हमे कोई दिक्कत आएगी ही नही बैठने कि उचित वयवस्था हो जाएगी आखिर प्रदेश कि राजधानी में स्थित ‘आयोग’ का एक भवन है ! ph कैंडिडेट के लिए शानदार वयवस्था होगी , आज तक का सबसे comfortable एग्जाम सेंटर !

भारी मन से कहना पड़ रहा है कि इस बार हमे अपने लिए एक soft attention चाहिए था , हमे special consideration चाहिए थी ! पैर में प्लेट पड़ी थी, हड्डी अभी जुड़ी नही थी , टांके २-३ दिन पहले ही कटे थे ! वहां हमारा 2nd तल पर एग्जाम था , पहले कि स्थिति होती तो 2nd तल तो क्या टॉप तल पर भी चले जाते ! गाड़ी में लगे झटको से हुए दर्द को सहन करते हुए हम एग्जाम पर केंद्रित होकर आयोग के भवन पहुंचे ! हम गाड़ी में ही बैठे हुए थे और हमारा भाई ग्राउंड फ्लोर पर ही परीक्षा कि वयवस्था करने कि प्रार्थना के साथ हमारे लिए व्हीलचेयर लेने गये ! चुकी वह एक प्रतिष्ठित जगह है तो हम पूरे-पूरे विश्वास में थे कि दोनों ही काम जल्द ही हो जायेंगे काफी देर बाद भाई लौटा और बताया कि परीक्षा जिस तल पर है वहीँ होगी और व्हीलचेयर के लिए पूछने पर जवाब था कि मरीज़ कैंडिडेट आपका है तो आपको ही लेके आना चाहिए था ! ये दोनों ही जवाब हतप्रभ कर देने वाले थे क्योकि हमे “वहां” से ऐसे गैर-ज़िम्मेदार रवैये कि उम्मीद बिलकुल नही थी ! हम ये बात बहुत अच्छे से जानते और समझते थे कि हमारा पेपर ग्राउंड फ्लोर पर लेना कोई बहुत दिक्कत कि बात नही थी , पर अगर वहां के प्रशासनीको कि अकर्मण्यता हावी हो जाये तो बात अलग है ! फिर हम गाड़ी से गेट तक पहुंचे , हम ये भी बताते चले कि चुकी अभी हड्डी जुड़ी नही है तो डॉ. ने पैर लटकाने से मना किया था तो हमारा पैर एक सदस्य एक तरफ बैसाखी और एक तरफ दूसरे सदस्य कि मदद से हमने बिल्डिंग में प्रवेश किया – वहां का नज़ारा जानिए आप लोग , वहां एक पुलिस वाले ने हमारी समस्या समझते हुए वहां के अधिकारी को सूचित किया जिन्होंने बाबू से बात करने को बोला , बाबू से बात कि तो उन्होंने उसी अधिकारी से अनुमति लेने के लिए बोल दिया .. अधिकारी ने फिर बाबू से बात करने को कहा …… इस तरह से हमारा केस एक बॉल कि तरह एक पाले से दूसरे पाले में झूलता रहा ! जो कर्मचारी आये उन्होंने लोगो कि मदद से ऊपर ले जाने कि सलाह दी , पर हमे अपने नाज़ुक पैर कि चिंता थी ! हम लोग डॉ. कि रिपोर्ट लेके सबको दिखाते रहे पर बात कि गंभीरता को किसी ने नही समझा … किसी अधिकारी के कान पर जू तक नही रेंगी ! जब हम लोगो ने नीचे ही एग्जाम लेने को बार-बार बोला तो एक शख्स का टालने वाला जवाब आया कि ‘अरे पहले से ही PH होती , प्रवेश पत्र पर लिखा होता तो वयवस्था हो भी जाती ‘ तो हमलोगो ने तुरंत प्रवेश पत्र में PH लिखा हुआ दिखाया तो वो निरुत्तर हो गये फिर वो निकल लिए ! हम समय से पहले ही पहुंचे थे ताकि वहा नीचे एग्जाम के लिए formalities हो जाये परंतु समय बीता और एग्जाम शुरू हो गया तब वहां क परीक्षा कक्ष के 3 निरिक्षको के आगे आने व खुद से ज़िम्मेदारी से हमारा केस हैंडल करने पर हम १५ मिनट विलम्ब से परीक्षा दे पाये , ५ मिनट formalities के यानी २० मिनट के नुकसान से हमने वो २ घंटे कि परीक्षा दी !
धन्यवाद उन 3 निरिक्षको तथा उस 1 पुलिस कर्मी का !

हमारे सवाल –

१. क्या महिला साक्षरता , महिला स्वावलम्बन , महिला सशक्तिकरण ये किताबो , लेखो और बुद्धिजीवियों के शब्दकोष के बाहर अस्तित्व नही रखते है ?

२. क्या महिला अधिकारों कि बाते चुनावी घोषणा पत्र तक ही सीमित है ?

३. क्या महिलाओ कि आत्मनिर्भरता के लिए बाते सिर्फ योजनाये बनाने तक ही सीमित है ?

४. क्या PH को आरक्षण दे देना ही काफी है ?

५. आयोग भवन जैसे प्रतिष्ठित जगह रैंप कि व्यवस्था अभी तक क्यों नही है ?

६. वहां व्हीलचेयर कि व्यवस्था क्यों नही है ? कौन सा एग्जाम है जिसमे कोई PH कैंडिडेट ना शामिल होता हो ? तो क्यों नही ध्यान दिया गया है अभी तक ?

७. अगर हमे ऊपर ले जाते वक़्त और समस्या हो जाती तो कौन ज़िम्मेदारी लेता ?

८. एक महिला PH होने के नाते हमारा केस और भी संवेदनशील तरीके से लिया जाना चाहिए था , पर वहां के अधिकारी झाकने तक नही आये , जो लोग आये भी वो निर्णय लेने वाले official नही थे शायद !

९. ये कोई बहुत बड़ी समस्या नही थी बस जहाँ रोल नंबर था और जहाँ हमे नीचे बैठना था वहां के निरिक्षको के सामान्य सहयोग से ये काम हो सकता था पर वहां यह एक अबूझ पहेली जैसी समस्या बन गयी !

१०. हमारे साथ जो बर्ताव हुआ, ये किसकी ज़िम्मेदारी बनती है ???

कहने को ये बहुत बड़ा मुद्दा नही पर ध्यान से देखा जाये तो ये एक गम्भीर मुद्दा है!

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